क्या है मेडिकल ऑक्सीजन क्यों हो रही है भारतीय अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी कैसे बनती है मेडिकल ऑक्सीजन - AGRICULTURE

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क्या है मेडिकल ऑक्सीजन क्यों हो रही है भारतीय अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी कैसे बनती है मेडिकल ऑक्सीजन

 हेलो नमस्कार दोस्तों मैं सुधीर भार्गव आप सभी का स्वागत करता हूं आज हम लोग चर्चा करेंगे कि यह मेडिकल में यानी अस्पतालों में यूज होने वाली ऑक्सीजन क्या होती है और हम जो लोग साथ लेते हैं इसमें कौन सी  गैस हम लोग अवशोषित करते हैं हम सब जानेंगे कि यह मेडिकल अखियन क्या होती है और इसकी कमी भारत के स्थलों में क्यों हो रही है और यह किस तरह बनती है क्या वास्तव में सरकार के पास ऑक्सीजन की कमी है और यह भी जानेंगे कि किस तरह मेडिकल ऑक्सीजन को ट्रांसपोर्ट करते हैं


 


क्या है मेडिकल ऑक्सीजन क्यों हो रही है भारतीय अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी कैसे बनती है मेडिकल ऑक्सीजन.


 क्या है मेडिकल ऑक्सीजन क्यों हो रही है भारतीय अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी कैसे बनती है मेडिकल ऑक्सीजन.


वैसे तो आप हम सब जानते होंगे कि हम लोग  ऑक्सीजन को लेते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं यह कार्बन डाइऑक्साइड पौधे ग्रहण करते तथा उसके बदले में हमें आक्सीजन प्रदान लेकिन जब हम सांस लेते हैं तो उसमें हम केवल ऑक्सीजन को ही नहीं बल्कि वातावरण में उपस्थित सभी गैसों का मिश्रण हम अपने स्वसन क्रिया द्वारा ग्रहण करते हैं जिसमें नाइट्रोजन कार्बन डाइऑक्साइड आर्गन तथा अन्य वायुमंडल में उपस्थित गए से मिली होती हैं जिसमें आखिरी अलका भाग केवल 30% ही होता है एक सामान्य मानो 1 मिनट में 12 से 20 बार सांस लेता है। 


एक सामान्य मानव 24 घंटे में 11000 लीटर एयर यानी हवा वायु का उपयोग करता है जिसमें केवल 20% ऑक्सीजन होती है यानी 550 लीटर के आसपास यानी जब हम लोग स्वतंत्र रूप से सांस लेते हैं तो उसमें केवल टोटल ली गई सांस में 20% ही ऑक्सीजन होती है। 


लेकिन करुणा के संक्रमण के बढ़ते प्रकोप से जिनको करुणा का संक्रमण हुआ है उन लोगों में लांग से यानी फेफड़े बहुत बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं जो कि अच्छी तरह से वर्क नहीं कर रहे हैं अर्थात वह गैस का अवशोषण अच्छी तरह से नहीं कर पा रहे हैं 18 फूल और सिकुड़ नहीं रहे हैं अच्छी तरह से जिससे वह स्वतंत्र हवा को बहुत ही कम मात्रा में शरीर के अंदर ले जा पाते हैं जिसमें से भी 20% ही ऑक्सीजन होती है जिससे उनकी आपूर्ति नहीं हो पाती जिसके लिए उन्हें मेडिकल ऑक्सीजन दी जाती है। 


यह मेडिकल ऑक्सीजन केवल ऑक्सीजन होती है जिसमें अन्य गैसे नहीं होती हैं इस ऑक्सीजन की शुद्धता 98% तक होती है जिसको रोगी के नाक से नली के द्वारा कनेक्ट किया जाता है और वह रोगी ऑक्सीजन की आपूर्ति कर पाता है। 



ऑक्सीजन का उपयोग सांस लेने में किया जाता है तथा बिल्डिंग और कटिंग करने में क्या जाता है तथा स्टील बनाने में के कारखानों में भी इसका उपयोग होता है इस गैस का उपयोग गोताखोर करते हैं तथा पर्वतारोही भी करते हैं और स्टील आदि को गलाने में भी इसका उपयोग किया जाता है और मेथेन बनाने में भी इसका उपयोग होता है। 


इस गैस को बनाने के लिए बहुत सी मशीनों का प्रयोग होता है इसे ऑक्सीजन कंसंट्रेटर कहते हैं इस मशीन में वायु को प्रवेश किया था तथा इसको बेहद ठंडा किया जाता है जिसमें -183 सेंटीग्रेड तापमान पर वायु में उपस्थित ऑक्सीजन द्रव में बदल जाती है इस दरों में बदली हुई ऑक्सीजन को सिलेंडर में भरकर इसे उपयोग में लाया जाता है। 

ऑक्सीजन गैस को कानूनी रूप से आवश्यक दवाओं की श्रेणी में रखा गया है इसका मतलब यह हुआ कि इसका मूल्य उत्पादित करने वाली इंडस्ट्री नहीं तय करेंगे बल्कि इसका मूल्य सरकार द्वारा तय होगा। 

भारत में बढ़ते हुए करो ना के मामले और बढ़ती ऑक्सीजन की खपत को पूरा करने के लिए भारत के पास ऑक्सीजन की कमी तो बिल्कुल है ही नहीं बल्कि इसके पास इस उपलब्ध गैस को यानि ऑक्सीजन गैस को विभिन्न स्थानों पर ट्रांसपोर्ट यानी विभिन्न जगहों पर पहुंचाने में साधनों की बहुत ही कमी है ऑक्सीजन टाइम की कमी है सिलेंडर्स की और यातायात के साधनों की भी कमी है क्योंकि सरकार के पास ऑक्सीजन की कमी नहीं है । 


बल्कि उसे प्रत्येक जगह पर उपलब्ध कराने की कमी है जिसके चलते सरकार ने सरकार ने हाल ही में ऑक्सीजन ट्रेन की शुरुआत की है जिससे जिसमें ऑक्सीजन टैंक को रखकर विभिन्न स्थानों पर गणित टारगेट स्थानों पर पहुंचाया जा सकता है इस ट्रेन में उपस्थित टैंक ऑटो क्रायोप्रिजर्वेशन से संयुक्त अर्थात क्रायोजेनिक है यानी इसमें उस गैस को ठंडा रखने के लिए यानी द्रव में रखने के लिए अलग से ठंड करने की मशीन की आवश्यकता नहीं होगी इंसटेंट में क्रायोजेनिक इंजन की व्यवस्था है। 

भारत के पास इस समय 7008 रीजन टाइम का है जबकि भारत के लिए इसकी उपलब्धता 12000 से 15000 होनी चाहिए लेकिन फिर भी सरकार ने विभिन्न परिस्थितियों में अन्य गैसो के टैंक को ऑक्सीजन लाने ले जाने का कार्य सौंप दिया है। 

इस मेडिकल ऑक्सीजन की कीमत ₹5000 प्रति 2 घंटा ऑक्सीजन सप्लाई है। 


भारत में 8 दिन की उपलब्धता एवं खपत -


मेडिकल यूज सप्लाई 3842 मीट्रिक टन प्रतिदिन मेडिकल यूज मांग 4795 मीट्रिक टन प्रतिदिन

 इंडस्ट्रियल सप्लाई 3679 मीट्रिक टन प्रतिदिन ऑक्सीजन का कुल स्टार्ट 58,130 मीट्रिक टन 

मेडिकल ऑक्सीजन का स्टाक 23,182 मीट्रिक टन है।

दोस्तों आर्टिकल कैसा लगा कमेंट सेक्शन में जरूर बताइएगा और हमारी ब्लॉग पर इस तरह के पोस्ट पढ़ने के लिए अब विजिट करते रहिए और अगर कोई गलती हो तो उसे कमेंट सेक्शन में जरूर बताइएगा जिसका हम अगली बार सही करने का प्रयास करेंगे धन्यवाद।

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