महिला सशक्तिकरण: महिलाओ की भागीदारी
हेलो नमस्कार दोस्तों स्वागत है आप सभी का मैं सुधीर भार्गव आपका स्वागत करता हूं आज हम लोग एक आर्टिकल के बारे में जानेंगे और यह आर्टिकल होगा महिलाओं से संबंधित यानी महिला सशक्तिकरण से संबंधित होगा जिसमें हम सब बहुत से पहलुओं के की ओर नजर रखेंगे और देखेंगे कि महिलाओं के सशक्तिकरण से संबंधित प्रयास कब से किये जा रहे हैं और किसके द्वारा यह किए गए और आज उनकी स्थिति क्या है क्या वह भविष्य में अपने अपने हितों को प्राप्त कर पाएंगे तो चलो जान और पढ़ लेते हैं इस आर्टिकल के बारे में।
महिला सशक्तिकरण: महिलाओ की भागीदारी
भारतीय समाज हमेशा से पुरुष प्रधान रहा है महिलाओं को दोयम दर्जा दिया जाता था और उनको सिर्फ आश्रित के रूप में समझाया था और आज भी ऐसा ही कुछ हो रहा है।
महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाओं को पुरुषों के बराबर राजनैतिक वैधानिक मानसिक सामाजिक व आर्थिक क्षेत्रों में निर्णय लेने की स्वतंत्रता से है।
सशक्तिकरण का मतलब है महिलाओं को ऊपर उठा कर उन्हें सशक्त मजबूत करना अर्थात बनाना है बल्कि वास्तविक बात तो यह है कि अगर हम उन्हें लिंगभेद की दृष्टि से ना देख कर एक मानव समझे और समानता का अधिकार हो उन्हें इस आधार पर कहीं पर भी नहीं रोकना चाहिए कि वह वह एक महिला है अर्थात महिला पुरुष में भेदभाव को समाप्त कर दिया जाए तो महिलाएं स्वत: ही सशक्त हो जाएंगी।
महिला सशक्तिकरण से तात्पर्य महिला के उस क्षमता से है जिससे उनमें योग्यता आ जाती है जिसमें वह अपने जीवन से जुड़े हुए सभी निर्णय स्वत: ले सके अर्थात् महिलाएं परिवार और समाज के सभी बंधनाओं से मुक्त होकर अपने निर्णयों का निर्माणकर्ता खुद हो ।
पौराणिक काल से महिलाओ के साथ अन्याय होता आ रहा है जैसे सती प्रथा दहेज प्रथा बाल विवाह कन्या भ्रूण हत्या पर्दा प्रथा यौन उत्पीड़न देवदाशी प्रथा नगरवधु इत्यादि।
आधुनिक भारतीय समाज सुधारकों राजा राम मोहन राय स्वामी विवेकानंद आचार्य विनोबा भावे आदि ने महिलाओं हेतु महिलाओं के उत्थान हेतु अपनी आवाज उठाई तथा महिलाओं के सशक्तिकरण पर कुछ सफलता भी पाई लेकिन पिता के समान होने के कारण महिलाओं के प्रति कोई विशेष परिवर्तन देखने को नही मिला। महिलाओं के अपने ऊपर होने वाले भेदभाव के खिलाफ आवाज भी उठाई लेकिन पितृसत्तात्मक समाज और पुरुष क्षमता मनोभाव के कारण उन्हें दबाया जाता रहा।महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित बहुत से कानून पारित किए गए पर कुछ हद तक ही सीमित रह गए और कमजोर तबके की महिलाएं आज भी उससे वंचित ही रही है और वह आज भी समस्याएं झेल रही हैं।
पंजाब के कुछ हिस्सों में आज भी महिलाओं के शोषण संबंधी क्रियाएं आज भी देखी जा सकती है पंजाब के कुछ हिस्सों में आज भी पर्दा प्रथा प्रचलित है महिलाएं घर से बाहर नहीं निकल सकती यहां तक कि महिला किसी भी नई महिला रिश्तेदार से बात नहीं कर सकती जबकि हरियाणा में इसके विपरीत है और वहां महिलाएं मिलकर सामने आई है।
महिला सशक्तिकरण को सफल बनाने के लिए किए गए बहुत से प्रयास जो निम्नलिखित हैं आप जानेंगे उन सभी के बारे में जो कि बहुत समय पहले से भी चालू थे और आज भी निरंतर प्रयास जारी है जैसे
हिंदू विवाह अधिनियम 1935
विधवा विवाह अधिनियम 1956
दत्तक संतान पोषण 1956
समान कार्य समान वेतन 1976
दहेज निषेध अधिनियम 1961
जननी सुरक्षा योजना 2005
राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना 1992
महिला एवं बाल विकास की स्थापना 1985
महिला सशक्तिकरण को बढ़ाने के लिए UNO यानी संयुक्त राष्ट्र संघ ने सन् 1992 को इंटरनेशनल वूमेन ईयर के रूप में मनाया था जिससे कि महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए जागरूकता बढ़ाई जा सके
सिर्फ इतना ही नहीं महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए अनेक योजनाएं भी सरकार द्वारा चलाई गई जो कि निम्नलिखित हैं
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
किशोरी शक्ति करण
कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय
मुद्रा योजना
स्टार्टअप योजना
स्टैंड अप योजना
सुकन्या समृद्धि योजना
प्रधानमंत्री जन धन योजना
और महिलाओं की सुरक्षा के लिए मोबाइल में पैनिक बटन जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराना
महिलाओं के लिए आरक्षण के लिए एक विधायक भी आया था लेकिन वह अभी तक अब पास नहीं हो पाया है जिसको भी अब तक 26 साल हो गए हैं लेकिन संभावना है कि वह एक न एक दिन पास अवश्य होगा।और महिला सशक्तिकरण को बढ़ाने के लिए ही महिला मेटरनिटी लीव को बढ़ाकर छह माह कर दिया गया है
अगर हम आज के संदर्भ में देखें तो आज महिलाएं पुरुषों से आगे निकल रही है आज महिलाएं हर हर क्षेत्र में यानी हर विभाग में अपनी ख्याति को उजागर कर रही हैं तथा खेलों और अन्य कार्यों में भी पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।
आने वाले समय में महिलाएं निश्चित रूप से सशक्त होंगी इसके लिए हमें जरूरत है कि हम हम भी महिलाओं के खिलाफ हो रहे उत्पीड़न को रोकने के लिए अपनी सोच में बदलाव लाएं ताकि हुआ भी अपनी संपूर्ण क्षमता प्रदर्शित कर सकें और सशक्त हो। आता हम कर सकते हैं कि कोई भी देश सफलता के शिखर पर तब तक नहीं पहुंच सकता जब तक उसकी महिलाएं उस देश की महिलाएं कंधे से कंधा मिलाकर ना चले।
तब यह भारत विकासशील नहीं विकसित देशों में गिना जाएगा तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 मे समानता का अधिकार का संपूर्णता लागू माना जायेगा।
शिक्षा के बाद विचारों में परिवर्तन संभव हो सकता है-
1.प्रारंभिक तथा उच्च शिक्षा को बढ़ावा देना वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना।
2.वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देना
3.महिलाओं के साथ जुड़े अपराधों का त्वरित निपटारा करना
4.कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण विकसित करना
5.लैंगिक समानता विरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाना
इससे स्पष्ट होता है कि जब तक हम अपनी सोच को विकलांग रखेंगे यानी जब तक अपनी सोच को अच्छा नहीं रखेंगे तब तक हम सदैव महिलाओं को कमजोर समझते रहेंगे। चाहिए कि हम अपनी सोच को बढ़ाएं और अच्छा करें जिससे कि महिलाएं अपनी आजादी का लाभ उठा सके और वह भी आसमान को छूने की शक्ति को हम लोगों के सामने दिखा सकें यद्यपि वह कुछ भी सकती हैं लेकिन उन्हें हम लोग करने से बाधित कर देते हैं या उनके लिए हम लोग बाधा बन जाते हैं यानी हम पुरुष सत्तात्मक समाज के लोग।
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