निर्धनता पर जीत hindi kahani हिन्दी कहानी - AGRICULTURE

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निर्धनता पर जीत hindi kahani हिन्दी कहानी

 नमस्कार दोस्तों स्वागत है आप सभी का हमारे ब्लॉग में आज आप एक कहानी के बारे में पढ़ेंगे जो कहानी मेरे ब्लॉग पर मेरी पहली कहानी है कहानी कैसी लगी कृपया आप अपना राय कमेंट सेक्शन में जरूर दीजिएगा । कृपया शेयर करना बिल्कुल ना भूलें।


                        "   निर्धनता पर जीत"



यह कहानी उस रघुदास की है जो समस्याओं से जूझते हुए भी अपने लक्ष्य का पीछा न छोड़ने वाला और जीवन के एक कोने में लक्ष्य तक पहुंचने में कामयाब होता है।पता नहीं कि जिंदगी के किस मोड़ पर अपना सच्चा मार्गदर्शक मिल जाए जिससे लक्ष्य पर पहुंचना आसान ही नहीं बल्कि जल्दी और सरलबद्ध तरीके से संपन्न हो जाए।और यह तो सभी को पता है  ही की लक्ष्य पर पहुंचने के लिए रास्ते में बहुत सारे कांटो से दखल करना पड़ता है। अगर हम गुलाब के फूल को तोड़ने जाएंगे तो हमें कांटों से लड़ना होता है ।


रघु दास एक बहुत ही गरीब व स्रोत रहित परिवार का एक लड़का है। जिसकी उम्र करीब 5 वर्ष है उसके पिता राजकिशोर एक दैनिक मजदूर हैं और माता श्यामा देवी एक ग्रहणी के साथ-साथ मजदूर भी। समय बीतता गया कि रघु दास के स्कूल भेजने की चिंता राजकिशोर और माता श्यामा देवी को सताती है उन्हें कहीं पर काम भी नहीं मिल पा रहा था। जिससे उन्हें पैसा मिलते और रघुदास की पढ़ाई व अन्य घरेलू खर्च निपटा लेता ।


राजकिशोर काम की तलाश में पास के शहर में गया तो उसे कुछ दिन के लिए काम मिल गया। जिससे उसने रघुदास का दाखिला एक स्कूल में करवा दिया रघु दास नियमित और निरंतर स्कूल जाता है। कुछ समय बाद श्यामा को कार्डियल संबंधित बीमारी हो जाती है। जिसका इलाज पैसा ना होने की वजह से ठीक से नहीं करवा पा रहे थे क्योंकि रघु दास की स्कूल फीस घरेलू खर्चे के बाद कुछ ही पैसा बच पाता था राजकिशोर के पास, श्यामा की दवाई के लिए जो उस बीमारी के पूर्ण इलाज के लिए काफी ना था।एक दिन सुबह का दिन था कि अचानक श्यामा देवी बेहोश हो गई राजकिशोर ने उसे देखा तो उसने सोचा इसे अस्पताल में भर्ती करवा देते  हैं। लेकिन फिर सोचता है कि पैसे तो है नहीं उसने तीन चार लोगों से पैसा उधार लेने की गुहार लगाई पर पैसा नहीं मिला उसी दिन राजकिशोर ने अपनी पत्नी और रघु दास अपनी मां खो चुके थे।


रघु दास ने अपनी मां को पैसा ना होने के कारण मरते देखा था। उसे बहुत दुख हुआ और उसने अपने दिल में इस बात को अच्छी तरह से संजोकर रख लिया। और भविष्य में कुछ कर गुजरने की ठान ली थी। उसी समय राजकिशोर को पत्नी की मृत्यु के बाद चिंता सताने लगी कि अब उनके बेटे की देखरेख कैसे होगी काम करने जाएं या फिर बेटे की देखरेख करें रघु दास अब 10 साल का हो गया है जो कि कक्षा 5 का तेज स्वभाव का गुणवान लड़का है।


दो साल बाद रघु दास के पिता की आकस्मिक मृत्यु हो जाती है रघु दास अब एक अनाथ लड़का हो जाता है जिसकी उम्र 12 साल की है। अब वह सोच विचार करता है कि पढ़ाई का खर्च कहां से आएगा कौन देगा और घरेलू खर्च कैसे पूरे होंगे तो उसने गांव के एक बड़े व्यक्ति यानी जमींदार के यहां नौकरी इस शर्त पर कर ली कि उसकी पढ़ाई का खर्च ,खाने व कपड़े के खर्च के अलावा स्कूल समय भी देना पड़ेगा। स्कूल समय के बाद सारा काम करेगा जैसे नांद भरना, चारा ,घर की सफाई आदि आदि इस तरह से रघु दास ने कक्षा 10 (मैट्रिक)पास कर ली। और अब उसे आगे की पढ़ाई के लिए अधिक पैसों की जरूरत थी जो उसे मिलना असंभव था तो उसने पढ़ाई छोड़ने का निश्चय किया। रघु दास पढ़ाई व घर छोड़ कर शहर की ओर पलायन कर जाता है।


रघु दास अब एक मजदूर लड़का बन गया था। उसने अब घर छोड़कर शहर की एक फैक्ट्री में काम करना चालू कर दिया रघु दास धीरे धीरे एक ईमानदार व सज्जन मजदूर बन गया था ।उसके बॉस (मालिक)मयंक से उसकी बहुत बनती थी यह देख कर उसके सभी साथी उससे जलते थे। एक दिन रघु दास काम कर रहा था कि अचानक उसकी हाथ की अंगुली मशीन से कट गई तभी मयंक ने उसे  देख लिया और उसे लेकर हॉस्पिटल गया मरहम पट्टी करा कर अपने घर ले गया। जहां वह मकान में रहता था रघु दास वहीं रहने लगा एक दिन मयंक खाना बना रहा था जो कि अच्छी तरह नहीं बना पा रहा था और न ही बैठ पा रहा था तब रघुदास ने कहा सर मैं बना दूं खाना तो मयंक ने कहा तेरे को खाना बनाना आता है क्या। तब रघु दास ने अपने अनाथ जीवन होने की कहानी सुनाई और कहा मां के जाने के बाद से खाना बनाना शुरू कर दिया था और मैं अच्छा खाना बना लेता हूं।उसी दिन से मयंक सर का खाना रघु दास बनाता था और स्वयं भी खाता था।


अब मयंक और रघुदास एक मालिक और नौकर नहीं बल्कि एक अच्छे दोस्त थे। दोनों एक दूसरे से अच्छी तरह मुखातिब हो रहे थे मयंक फैक्ट्री का हेड था वह अच्छी कमाई कर लेता था और उसे रघु दास की भी बहुत फिक्र होने लगी थी। उसने रघु दास के लिए एक स्वरोजगार चुना और रघु दास को बताया कि तू कपड़ा फैक्ट्री लगा ले। उसमें जो भी पैसा लगेगा मैं लगा दूंगा और वह पैसा आपकी मर्जी हो तो कभी वापस करना मैं कभी नहीं मांगूंगा। यह सुनकर रघु दास हंसने लगा कहा भैया क्या मजाक कर रहे हो तब मयंक ने गंभीरता से कहा मैं सच कह रहा हूं। तुम शुरू करो तब रघु दास को यकीन हो जाता है और हां कर देता है। लेकिन इस शर्त पर की पार्टनरशिप होगी तो मयंक सर की ही होगी रघु दास काम चालू कर देता है ।


 कुछ समय बाद मयंक मयंक का सारा पैसा वापस कर देता है। और पूरी फैक्ट्री का मालिक रघु दास हो जाता है और वह लगातार कमाई करके एक दूसरी फैक्ट्री भी स्थापित कर लेता है ।और काफी बेरोजगार लोगों के लिए रोजगार भी प्रदान किया या करता है ।अब रघु दास एक मालिक है और वह पैसा वाला बन गया क्योंकि उसे बचपन की बात ध्यान थी कि पैसा की कमी के कारण उसने मां खोई ही थी।


रघु दास की गिनती अब धनी लोगों में होने लगी रघु दास को तनु नाम की लड़की से प्रेम हो जाता है । जो कि खुद एक धनवान परिवार से ताल्लुक रखती थी प्रेम संबंध के चलते रघुदास तनु की शादी हो जाती है अब तो रघु दास की जिंदगी में मौज ही मौज है शिवाय मम्मी-पापा के।मम्मी पापा के न होने की वजह उसकी समझ मे निर्धनता ही थी।कारण कोई भी रहा हो जीवन संघर्ष के चलते आज वह ख़ुशी खुशी जीवन बिता रहा है।

कहते हैं कि व्यस्त रहो मस्त रहो।।


                                                -सुधीर भार्गव



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