MACS 1407 सोयाबीन की नई किस्म भारतीय वैज्ञानिकों ने किया विकसित||Indian scientists developed new variety of soybean|| राजेंद्र नीलम धान की नई किस्म विकसित|| Rajendra neelam a new variety of paddy developed - AGRICULTURE

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MACS 1407 सोयाबीन की नई किस्म भारतीय वैज्ञानिकों ने किया विकसित||Indian scientists developed new variety of soybean|| राजेंद्र नीलम धान की नई किस्म विकसित|| Rajendra neelam a new variety of paddy developed

 हेलो नमस्कार दोस्तों स्वागत है आप सभी का मैं सुधीर भार्गव आप सभी का हार्दिक स्वागत करता हूं आज हम लोग डिस्कस करेंगे एक सोयाबीन की नई प्रजाति तथा एक धान की नई प्रजाति के बारे में जोकि हाल ही में विकसित की गई हैं। इस तरह के बारे में जानने के लिए आप हमारी ब्लॉग पर विजिट कर सकते हैं जहां पर आपको डेली करंट अफेयर से संबंधित प्रश्नोत्तरी और मुद्दे मिलेंगे। 



MACS 1407 सोयाबीन की नई किस्म भारतीय वैज्ञानिकों ने किया विकसित||Indian scientists developed new variety of soybean|| राजेंद्र नीलम धान की नई किस्म विकसित|| Rajendra neelam a new variety of paddy developed 









 MACS 1407 सोयाबीन की नई किस्म भारतीय वैज्ञानिकों ने किया विकसित||Indian scientists developed new variety of soybean|| 


राजेंद्र नीलम धान की नई किस्म विकसित|| Rajendra neelam a new variety of paddy developed 




भारतीय वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की एक नई किस्म विकसित की है यह प्रजाति है MACS 1407 है। सोयाबीन की MACS 1407 किस्म का विकास अघ्रोकर रिसर्च इंस्टीट्यूट पुणे महाराष्ट्र के वैज्ञानिकों ने आईसीआर के साथ मिल कर तथा भारत सरकार के विज्ञान प्रौद्योगिकी के स्वायत्त संस्थान से सम्मिलित होकर इस किस्म का विकास किया गया है। 


एमएसीएस 1407 किस्म का विकास कन्वेंशनल क्रॉस ब्रीडिंग टेक्निक का उपयोग करके इस किस्म का विकास किया गया। यह किस्म सोयाबीन की सर्वाधिक उपज देने वाली किस्म है जिस की उत्पादन क्षमता 39 कुंतल प्रति हेक्टेयर दर्ज की गई है। 


 एमएसीएस 1407 सोयाबीन की प्रजाति प्रमुख  कीट पतंगों के प्रति अवरोधी है जैसे गर्डन बीटल,लीफ माइनर लिफ रोलर,तना मक्खी,  सफेद मक्खी और डिफोलिएटर आदि से अवरोधी है।


 सोयाबीन की इस प्रजाति में 43 दिन में 50% फूल आने लगते हैं इसमें सफेद फूल तथा बीज पीले रंग के आते हैं यह 104 दिन में फसल परिपक्व हो जाती है। 


इस किस्म के बीज में तेल की मात्रा 19.81 परसेंट होती है जबकि प्रोटीन की मात्रा 41 परसेंट पाई जाती है यह किस अधिक रोगाणु छमता दिखाती है। 


यह किस्म उच्च उपज तथा कम पानी के साथ-साथ कीट प्रतिरोधी होती है तथा यह उर्वरकों के लिए बहुत ही उपयोगी फसल मानी जाती है। इस किस्म की फसल एक समान होने के कारण यांत्रिक कटाई के लिए बहुत ही उपयुक्त रहती है। 




हाल ही में केंद्र उप समिति द्वारा फसल मानकों और कृषि किसान कल्याण मंत्रालय के द्वारा कृषि फसलों की किस्म की अधिसूचना जारी की गई है भारत सरकार एम एस ई एस 1407 किस्म के बीजों को खेती के लिए किसानों को कानूनी रूप से उपलब्ध कराने की घोषणा कर दी है इस किस्म के बीज किसानों को 2022 में खरीफ के मौसम में उपलब्ध कराए जाएंगे । 


यह किस्म असम बंगाल झारखंड छत्तीसगढ़ तथा भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए उपयुक्त है। 


सोयाबीन का वैज्ञानिक नाम ग्लाइसिन मैक्स है तथा यह एक दलहनी फसल है इसलिए इसे दलहनी कुल फेबेसी कुल में रखा गया है सोयाबीन की फसल दलहनी के साथ-साथ तिलहन में अधिक मात्रा में उपयोग किया जाता है इसे गरीबों का मांस भी कहा जाता है क्योकि इसमे अधिक मात्रा में प्रोटीन पाई जाती है तथा इसके खली से बनाए जाने वाले पदार्थ जिन को सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है वह बिल्कुल मांस से समानता रखते हैं इसलिए इसे गरीबों का मांस भी कहा जाता है। 


 प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट और वसा सोयाबीन के मुख्य घटक है जिसमें 38 से 40% प्रोटीन, 22 परसेंट तेल ,21% कार्बोहाइड्रेट, 12% नमी तथा 5 परसेंट भस्म होती है। 


सोयाबीन ईस्ट इंडिया का नेटिव है। 


सोयाबीन में पाई जाने वाली प्रोटीन से कोलेस्ट्रॉल कम होता है यह कैंसर रोधी होता है जो था इसमें पाई जाने वाली ट्रिप्सिन इन्हींबीटर भी कैंसर प्रतिरोधी होता है सोयाबीन की विटामिन के थक्का रोधी होती है तथा इसमें विटामिन बी पाई जाती है जो बेरी बेरी रोग प्रतिरोधी होती है। 


विश्व का 60 परसेंट सोयाबिन मेरिका में पैदा किया जाता है भारत में सबसे अधिक सोयाबीन का उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है मध्य प्रदेश के इंदौर में सोयाबीन रिसर्च सेंटर स्थापित है। 


ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन सोयाबीन 1967 नई दिल्ली। 






राजेंद्र नीलम धान की नई किस्म विकसित|| Rajendra neelam a new variety of paddy developed 


डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय बिहार के वैज्ञानिकों ने rajendr नीलम धान की एक नई प्रजाति विकसित की है जो कि सूखा के प्रति सहनशील है और यह कम पानी में पैदा होने वाली धान की एक नई किस्म है। 


वैज्ञानिकों का मानना है कि इसमें आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह  किस्म दो तीन पानी में ही उगाई जा सकती है जबकि नॉर्मल धान में सात से आठ पानी लगते हैं इस किस्म की उत्पादन क्षमता 40 से 45 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। 


इस किस्म के सफल सर्वाइवल के लिए बिहार झारखंड छत्तीसगढ़ राजस्थान आदि स्थानों पर इसके ट्रायल लगाए गए और सफल हुए जिसके बाद  सेंट्रल वैरायटी रिलीज कमेटी के द्वारा इसे जारी कर दिया गया। इसके सीड प्रोडक्शन के लिए बिहार निगम को इसके बीज सौंप दिए गए हैं और किसानों को कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा भी  बीज प्रदान किया जा रहे हैं।




दोस्तों या आर्टिकल कैसा लगा कमेंट सेक्शन में जरूर बताइएगा और यदि कोई गलती हो तो उसे भी कमेंट सेक्शन में जरूर बताइएगा और यदि आप इस तरह के समसामयिक मुद्दे को जानने के इच्छुक हैं तो आप हमारी ब्लॉग पर विजिट कर सकते हैं और इसे शेयर करना ना भूलें ध है।

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