जलवायु परिवर्तन का कृषि उत्पादन तथा अन्य कृषि क्रियाओं पर प्रभाव तथा उसका समाधान। - AGRICULTURE

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जलवायु परिवर्तन का कृषि उत्पादन तथा अन्य कृषि क्रियाओं पर प्रभाव तथा उसका समाधान।

 

जलवायु परिवर्तन का कृषि उत्पादन तथा अन्य कृषि क्रियाओं पर प्रभाव तथा उसका समाधान।


जलवायु परिवर्तन एक ऐसी अनचाही गतिविधि अथवा परिणाम है जो प्राकृतिक संधान संसाधनों का अनुचित उपयोग करने से तथा अधिक उपभोग करने से उसमें किसी ना किसी प्रकार से प्राकृतिक असंतुलन का बिगड़ जाना जलवायु परिवर्तन कहलाता है जिसमें वायुमंडल का तापमान का बढ़ जाना वर्षा का पानी अमित हो जाना पेड़ पौधों तथा फसलों पर इसका इस प्रकार बुरा प्रभाव पड़ता है कि उत्पादन बहुत ही कम पड़ जाता है और उसकी गुणवत्ता में भी काफी हद तक बुरा प्रभाव पड़ता है जलवायु परिवर्तन का प्राथमिक शोषण कर्ता मानव ही है इसके बाद कुछ प्राकृतिक गतिविधियां भी होती हैं जिसके कारण जलवायु परिवर्तन को बल मिलता है लेकिन जलवायु परिवर्तन मानव जीवन के लिए जीव जगत के लिए तथा वनस्पति तथा पेड़ पौधों अथवा फसल के लिए भी इसका बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है अर्थात विपरीत प्रभाव पड़ता है।



जलवायु परिवर्तन के परिणाम स्वरूप मृदा में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीवों की क्रियाशीलता में कमी आती है जिसके कारण उनकी कार्यविधि बुरी तरह से प्रभावित हो जाती है और वह अपना कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं जिससे मृदा में उपस्थित लाभदायक जीवाणु खनिज तत्वों को मिनिरलाइज करके उन्हे पौधों के लिए उपयोग योग्य बनाते हैं जलवायु परिवर्तन के चलते हो वह मिनिरलाइजेशन की प्रक्रिया को पूरा नहीं कर पाते जिससे मृदा की पोषक तत्व धारण क्षमता कम हो जाती है और जिसके परिणाम स्वरूप फसल उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है।



जलवायु परिवर्तन तथा बदलते युग में खाद्य आपूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार की चुनौतियां हैं

1. आज के बदलते युग के साथ लोगों की पसंद में इस प्रकार परिवर्तन आया है कि लोग परंपरागत सब्जी तथा खाद्यान्नों को छोड़कर आज के रंग-बिरंगे फल सब्जी तथा नव विकसित सब्जी तथा खाद्यान्न जिसमें पोषक तत्वों की प्राया कमी होती देखी जाती है स्वाद ही मात्र उसकी विशेषता रहती है कभी-कभी तो स्वाद भी नहीं रहता बल्कि दिखावटी ही मात्र रहती है लेकिन नए युग के लोगों को पोषक तत्वों से क्या मतलब उन्हें तो सिर्फ जुबान का स्वाद खबर दिखावट में अच्छी होनी चाहिए।

2. असमय मौसम में परिवर्तन जब जैसा मौसम चाहिए तब उस मौसम का उपलब्ध ना होना आज के परिदृश्य में कृषि के क्षेत्र में एक बहुत बड़ी चुनौती बनती जा रही है क्योंकि फसलों की वृद्धि एवं उत्पादकता मौसम के अनुसार घटती बढ़ती है यदि उस फसल को अनुकूल मौसम तापमान तथा वर्षा की नियमितता मिलती रहेगी तो फसलों की वृद्धि अच्छी होगी तथा उनका उत्पादन भी ठीक-ठाक दर से हो जाता है।
3. जलवायु परिवर्तन के कारण साल दर साल निरंतर तापमान में वृद्धि होती जा रही है जो कि फसलों की वृद्धि एवं जीवन चक्र की अन्य क्रियाओं को बुरी तरह से प्रभावित करता है तापमान का कृषि के फसलों में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि अगर तापमान अनुकूल नहीं होता तो पौधे उगने से लेकर अपने अंतिम काल तक के समय को पूरा नहीं कर पाते यदि तापमान अनुकूल ना हो तो पौधे जमते ही नहीं यदि उठ भी गए तो वह अपना जीवन चक्र पूरा नहीं कर पाते यदि तापमान अनुकूल परिस्थिति के अनुसार नहीं मिलता।

4. घटता जलस्तर आज कृषि की एक बहुत बड़ी समस्या बनकर उभर रही है इस समस्या के कारण फसलों का जीवनकाल बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है इस समस्या से निपटने के लिए हमें दीर्घकालिक प्रणाम के लिए वृक्षारोपण करना तथा जल संसाधनों का उचित उपयोग करना है तथा इसके साथ साथ हमें जल के प्रबंध के लिए हमें वर्षा जल को एकत्रित करना तथा उसे कृषि के उपयोग में लाना जल की कमी को ध्यान में रखते हुए हम सिंचाई की कुछ विधियों का उपयोग करके भी हम जल की कमी को पूरा कर सकते हैं क्योंकि जितना जलम पौधों को देते हैं उसका 1 से 2% ही पौधे उसका उपयोग कर पाते हैं इसके लिए हमें निम्नलिखित विधियों का उपयोग करना होगा।
ड्रिप सिंचाई विधि इस विधि में पौधे के जड़ क्षेत्र में बूंद बूंद करके पानी सिंचाई पाइप द्वारा दिया जाता है
बौछारी सिंचाई विधि बहुत सारी सिंचाई विधि इसे स्प्रिंकलर सिंचाई विधि भी कहते हैं इस बीच में पौधों को जब आवश्यकता होती है तब बौछार के माध्यम से फसलों के ऊपर कृत्रिम वर्षा कराई जाती है।
अधो स्तरीय सिंचाई विधि  इस इस विधि में खेत में अधो स्तर (भूमि के निचले भाग में) जालीदार पाई डालकर उसमें पानी भेजा जाता है जिससे पानी सीधे पौधों की जड़ क्षेत्र को ही प्राप्त होता है और इससे वाष्पीकरण द्वारा जल का ह्रास नहीं हो पाता है और जल का अच्छी तरह से सदुपयोग हो जाता है।

5.आज की आज खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कृषक तथा कृषि उत्पादक रासायनिक उर्वरकों तथा रासायनिक पेस्टिसाइड के उपयोग के द्वारा भूमि के चरण को प्रभावित कर रहे हैं और कृषि उत्पादों को विषाक्त बनाकर लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं साथ में रासायनिक तथा पेस्टिसाइड का उपयोग का प्रभाव जलवायु परिवर्तन पर भी पड़ रहा है जिसका इनडायरेक्टली मानव जीवन पर भी प्रभाव देखने को मिलता है।

जलवायु परिवर्तन से निपट ते हुए हम कृषि उत्पादों को किस तरह बढ़ा सकते हैं।

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए हमें यदि कृषि उत्पाद को बढ़ाना है तो हमें निम्नलिखित कदम उठाने की जरूरत है

1. जलवायु परिवर्तन के दौर में यदि हम कृषि के उत्पादन को बढ़ाना चाह रहे हैं तो हमें ऊंची अवध की विश्वसनीय प्रजाति का चयन करना चाहिए जो जलवायु मानकों पर खरी उतरती हो तथा जलवायु परिवर्तन के कारक जैसे तापमान वर्षा आदि को सहन करने की क्षमता रखती हो।
2. जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने तथा कृषि उत्पाद को बढ़ाने के लिए हमें खाद तथा उर्वरक का सही तथा आवश्यकता अनुसार उपयोग करना चाहिए इसके लिए हमें मृदा की जांच करानी चाहिए उसके अनुसार उसमें पोषक तत्वों को देना चाहिए

3. जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए हमें परंपरागत कृषि की ओर जाना होगा तथा ऑर्गेनिक फार्मिंग को प्रोत्साहन देना होगा इसके लिए हमें हरी खाद जैविक खाद वर्मी कंपोस्ट गोबर की खाद तथा अन्य सूक्ष्म जीव खादों का उपयोग करना चाहिए जिससे मृदा की जल धारण क्षमता पोषक तत्व धारण क्षमता तथा मृदा की भौतिक रासायनिक तथा जैविक गुणों में सुधार के साथ-साथ कृषि उत्पादन में अपार वृद्धि होने की संभावना बढ़ जाती है।

4. प्राकृतिक संसाधनों का उचित उपयोग करना चाहिए तथा उसको जितना आवश्यकता है हमें उतना ही इसका उपयोग करना चाहिए और उसे भविष्य की पीढ़ी के लिए बचा कर रखना हमारे लिए अति आवश्यक है।
5. जलवायु नियंत्रण का दूरगामी प्रणाम के लिए समय अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए जिससे जलवायु परिवर्तन नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन इसके परिणाम इतनी जल्दी लिखना शुरू नहीं होते इसके लिए हमें कुछ ऐसे बंद करने चाहिए जिससे हम वृक्षारोपण को बढ़ावा देना चाहिए जिसका त्वरित प्रभाव तो नहीं लेकिन दूरगामी परिणाम तो अच्छा मिलेगा।

6. कृषि उत्पादन से अच्छा लाभ प्राप्त करने के लिए हमें लोगों की आवश्यकता के अनुसार कृषि फसलों को उगाना चाहिए अर्थात जिस फसल की लोकप्रियता समाज में अधिक हो तथा अधिक लोगों तरफ पसंद की जाती हो हमें उस फसल को अपनी फसल चक्र में शामिल करना चाहिए और उसे अधिक लाभ कमाया जा सकता है

उपर्युक्त को देखते हुए हमें इंटीग्रेटेड फार्मिंग तथा प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देते हुए हमें इस प्रकार खेती को करना चाहिए जिससे पर्यावरण को प्रदूषण ना हो जलवायु परिवर्तन नियंत्रित में हो तथा हमारी फसल मानव उपभोग के लिए खाद्य सुरक्षा के मानकों में खरी उतरती हो और कम लागत में हम अधिक उत्पादन को प्राप्त कर रहे हो।

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