लाकडाउन, ग्रामीण और शहरी जीवन में परिवर्तन - AGRICULTURE

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लाकडाउन, ग्रामीण और शहरी जीवन में परिवर्तन

 हैलो, नमस्कार दोस्तों स्वागत है आप सभी का हमारे ब्लॉग में।और हां आज हम इस ब्लॉग को स्वतंत्र होकर लिख रहा हूं अगर  किसी को कुछ बुरा लगे तो क्षमा करना और इस ब्लॉग में किसी को आधार मानकर या किसी के प्रति सोचकर नहीं लिख रहा हूं। आप सभी से निवेदन है कि आर्टिकल को ध्यान लगाकर शुरू से अंत तक पढ़िएगा। और अपना राय कमेंट सेक्शन में जरूर  दीजिएदीजिएगा।


                        "परिवर्तन जिनका नारा हो,

                          वो लोग हमारे साथ बढ़ें।"

   

      "लाकडाउन, ग्रामीण और शहरी जीवन में परिवर्तन "


जैसा की आप सभी को पता है कि कोविड- 19 संक्रमण के चलते देश और विदेश की विशाल जनता इस संक्रमण के खौफ को डटकर सामना कर रही है।वायरस की वैक्सीन की खोज का परिणाम तक पहुंचने तक जनता को बचाने का एकमात्र तरीका है सामाजिक दूरी बनाए रखना क्योंकि वायरस का वेक्टर (वाहक) मानव स्वयं है। विश्व के बहुत से देश इस वायरस की महामारी से बचने के लिए सामाजिक दूरी संतुलित रखने के लिए लाकडाउन की घोषणा की है।जिसमें भारत भी अछूता नहीं रहा और भारत सरकार ने 22 मार्च को एक दिन का जनता कर्फ्यू फिर 21 दिन का लाकडाउन और फिर राहत ना होने पर 19 दिन के लाकडाउन का विस्तारण। इसके बाद पुनः दो सप्ताह के लाकडाउन की घोषणा की।और आगे भी राहत ना होने पर लॉकडाउन को विस्तारित किया जा सकता है।


लाकडाउन के इस दौर में जब स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, ट्राफिक, ट्रेन, फ्लाइट, फैक्ट्री, मॉल दुकान आदि सब कुछ बंद है,और मानव ठहरा गतिशील प्राणी उसे तो हर पल कुछ करने की या घूमने की सूझती है।लेकिन इस लाकडाउन की बंदी में उसे घर पर ही रहने के लिए मजबूर कर दिया है।  लेकिन मानव भी इस महामारी की विशाल घटना में  काफी कुछ समझ बूझ कर एक जिम्मेदार नागरिक बनकर सामने आकर आकर इस संकट की घड़ी में सहयोग की भावना से आगे बढ़ा है और उसने सरकार द्वारा घोषित लाकडाउन का कड़ाई से पालन भी  किया है।


इस लाक डाउन डाउन के चलते जब स्कूल कॉलेज बंद है।और रेगुलर परीक्षा से लेकर सभी  प्रतियोगी परीक्षाओ को सामान्य परिस्थितियां होने तक आगे बढ़ा दिया गया है।इस बीच छात्रों की पढ़ाई में आ रहे गैप को भरने के लिए बहुत से संस्थानो ने ऑनलाइन क्लास लेना आरंभ कर दिया है। लेकिन जिन संस्थानों के पास उचित संसाधनों की कमी है वह छात्रों को मात्र स्टडी मैटेरियल उपलब्ध कराकर छात्रों से मास मीडिया के जरिए संपर्क में रह रहे हैं।यू कहे तो इस लाकडाउन ने ऑनलाइन शिक्षा को और अधिक विकसित करने का काम किया है या बल दिया है।


लाकडाउन (तालाबंदी) के चलते शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में वाहनों की आवाजाही पर रोक और फैक्ट्री आदि बंद होने से तथा मानव द्वारा भी फैलने वाली गंदगी में भी भारी कमी देखने को मिली है जिसको केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ऑफ इंडिया ने बताया है कि गंगा की सफाई जहां बहुत से नए नए प्रोजेक्ट नहीं कर पाए वह लाकडाउन में काफी कुछ साफ हो गई है जमुना नदी में भी सफाई देखने को मिली है और सिर्फ नदियाँ ही नहीं सारा परिवेश स्वच्छ हो गया है पर्यावरण में काफी कुछ इजाफा हुआ है।बहुत सारे प्रदूषित शहरों की वायु में लाकडाउन के चलते वाहन चालन प्रतिबंध के कारण काफी कुछ उच्च गुणवत्ता में सुधार हुआ है।मानव की गतिविधियां बाधित होने से हर प्रकार के प्रदूषण में भारी कमी आई है।




  लॉकडाउन के प्रभाव की ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो ग्रामीण क्षेत्रों की जनता का शहरों की ओर आवाजाही पूरी तरह बाधित है जिससे उन्हें हर तरह की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।कृषि सामग्री खाद, बीज से लेकर खाद्य सामग्री तक जो अक्सर शहरों ही मिल पाता है।


 ग्रामीण जनता वैसे तो कृषि कार्यों में व्यस्त हैं। कुछ गरीब मजदूरों को काम भी नहीं मिल रहा है वो केवल सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर ही निर्भर है।गांव में जिओ के मोबाइल की संख्या ज्यादा होने से लोगों में जागरूकता व जानकारी तेजी से फैली है। हर कोई जो बड़ी-बड़ी चीजों को नहीं समझते थे वह भी आज वायरस के बारे में काफी जानकारी रखते हैं लेकिन कुछ लोग कभी-कभी अफवाहों का शिकार भी हो जाते हैं।और परेशानी का सामना करना पड़ जाता है।किसान भी अपनी परवाह न करते हुए एक वास्तविक हीरो का रोल अदा करते हुए खेतों में काम कर रहा है।

बाजार व मंडी बंद होने से किसानों की फसल व खेत में लगी सब्जी भी नहीं बिक पा रही है अगर गांव-गांव बेंचता भी है तो उसे लाभ के बजाय हानि का सामना करना पड़ता है ।इस समय हर कोई एक जेल का कैदी बनकर समय काट रहा है लेकिन यह सार्वजनिक हित में कदम है हम सबको इसका पालन करना जरूर चाहिए।


शहरी क्षेत्रों में तो लाख डाउन ने बहुत से विचित्र परिवर्तन ला दिए हैं अगर हम देखें तो ग्रामीण की अपेक्षा शहरों में शिक्षित में लोगों की संख्या ज्यादा होने से अधिक जागरूकता देखने को मिलती है।जिसका परिणाम यह है कि वह सब दुख,दर्द,लड़ाई, फसाद,क्रोध ,घमंड आदि को भूलकर एक दूसरे की मदद के लिए वास्तविक हीरो की तरह हर सामान्य जनता से लेकर नेता और सेलिब्रिटी सामने आ रहे और जैसी जिसकी आस्था है।वह उसी क्रम में रुपया पैसा खाना ,मास्क, दवाई आदि लोगों को दान कर रहे हैं।और यहां हम डॉक्टर्स, नर्सेस,सफाई ,और सुरक्षाकर्मियों की तो सराहना करें तो कैसे करें जो दूसरों को बचाने के लिए जान पर खेल रहे हैं।यह सभी भी संकट की घड़ी में रियल हीरोज की श्रेणी में आते हैं। 

शॉपकीपर भी सामाजिक दूरी को संतुलित करने के लिए उचित दूरी पर कस्टमर सर्किल बनाकर नियम अपना रहे हैं।रुपए पैसों को भी कीटाणु रहित करते हैं तथा हाथ बार-बार धुलवाते तथा धोते हैं।


लॉकडाउन में लोग घरों मे खासकर शहरों के संदर्भ में बहुत ही बोरिंग महसूस कर रहे हैं।तो बहुत से लोग सालों पहले सोचें वह काम भी कर रहे हैं जो कहते थे कि कभी समय मिलेगा तो कर लेंगे तो उनके लिए यह समय बहुत ही अच्छा है।तो बहुत से लोग गृह वाटिका में तो कुछ पकवान बनाना सीख रहे हैं।तो कुछ बोन्साई ,पेड़ ,पौधे, नर्सरी आदि लगा रहे हैं।और बहुत से लोग फैशन, डिजाइन ,इंस्ट्रूमेंटल ध्वनि तथा यंत्र वादन भी सीख रहे हैं।तो बहुत से लोग डिजिटलीकरण के नए आयामों को भी खोज रहे हैं।लाकडाउन के चलते स्कूल कॉलेजों के सभी छात्र घर पर ही लाड प्यार मे परिवार के साथ समय बिता रहे हैं।यह समय हर अभिभावक के लिए अपने बच्चों के को जज (परख) करने का सबसे अच्छा समय है।बहुत से छात्र छात्रावास में या घर से बाहर रहकर कुछ बुरी आदतों को अनुकूलित कर लेते लेकिन घर में रहकर या तो स्वयं त्याग करें या फिर कुछ अभिभावक सुधारने का प्रयास कर रहे हैं।जबकि कुछ तो इग्नोर भी करते हैं।

फिलहाल यूं कहे तो इस समय का उपयोग हर व्यक्ति अपनी मानसिक क्षमता के आधार पर सही सही कर रहा है और सरकार द्वारा भी राहत सामग्री उपलब्ध कराने तथा अन्य घोषणाएं भी कोविड-19 से लड़ने में अहम भूमिका निभा रही है।


गांव और शहरों में सामाजिक दूरी को संतुलित करने में उन लोगों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है जिनकी शादी लाकडाउन में होने वाली थी पर उसने उसे आगे बढ़ा दिया  है।यह तो सत्य है कुछ ना कुछ तो ग्लानि (दुख) जरूर हुआ होगा उन्हें।लेकिन उनके उस योगदान को भी नहीं भुलाया जा सकता।



लॉकडाउन में कुछ आशिक जो लंबे समय से अपनों से दूर हैं उनके दिलों का हाल पूछने पर जवाब मे मिलती है सिर्फ दुख भरी दास्तान।लेकिन वह भी अच्छे है कि उसने सार्वजनिक हित में लॉकडाउन का पालन किया है।मैं भी जल्द उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूं।


 हम सभी लॉकडाउन के इस समय को उम्मीद की किरण के इंतजार में काट रहे हैं जो शायद एक बड़े पत्थर के उस पार है कब यह पत्थर हटेगा कब किरण हम तक यानी वैक्सीन की सफलता को प्राप्त करेगी।और कौन सा दिन होगा जब हम सब पहले जैसे पूरी तरह स्वतंत्र होंगे।लेकिन नहीं हम उस समय के काफी करीब हैं जब हम स्वतंत्र होंगे।धैर्य रखिये,उम्मीद कहती है सब अच्छा ही होगा।


आप अपना बहुत ख्याल रखिएगा। 


                  धन्यवाद।

                                                             -सुधीर भार्गव


Sudheer Bhargav

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