संघर्ष की मुहिम (कहानी) /struggle campaign(story) हिंदी कहानी hindi story - AGRICULTURE

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संघर्ष की मुहिम (कहानी) /struggle campaign(story) हिंदी कहानी hindi story

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 संघर्ष की मुहिम (कहानी) /struggle campaign(story) हिंदी कहानी hindi story

    

     "करो कुछ ऐसा दुनिया करना चाहे आपके जैसा"



                          "संघर्ष की मुहिम"


रामलाल एक बहुत ही गरीब परिवार का सदस्य है जिसकी पत्नी सुभागी बहुत ही  गुणवान स्त्री है।रामलाल एक ईमानदार एवं नेक दिल व्यक्ति हैं।लेकिन रामलाल के घर की दशा गरीबी के कारण बहुत ही खराब है। रामलाल के घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं है और पहनने के लिए अच्छे वस्त्र भी नहीं है।रामलाल मेहनत मजदूरी करके अपना और अपनी पत्नी सुभागी का पेट भरता है अभी रामलाल के परिवार में रामलाल व उसकी पत्नी दो ही लोग हैं।सुभागी बहुत ही समझदार एवं संतोष रखने वाली स्त्री थी सुभागी है।अपने घर की स्थिति दशा से अच्छी तरह परिचित है।इसलिए वह रामलाल से कभी कपड़े या अन्य जेवरात के लिए कभी कुछ नहीं कहा करती।और वह मन ही मन में अपने भविष्य के सपने देखा करती कि वह कौन सा दिन होगा जब हम भी नए-नए कपड़े एवं सोने चांदी के जेवरात पहन सकूंगी।और उसे यह भी विश्वास था की एक तो ऐसा दिन जरूर आएगा जब हम अपने सपने को सच में देखूंगी। रामलाल भी मजदूरी करते-करते बहुत परेशान हो गया था।तब उसने निश्चय किया कि वह दैनिक मजदूरी छोड़कर वहीं पर मासिक मजदूरी पर काम करेगा और उसने एक फैक्ट्री में कुछ रुपए मासिक मासिक की दर से चौकीदारी कर ली।इसी तरह संघर्ष के चलते काफी दिन बीते रहे।


अब रामलाल के दो पुत्र व एक पुत्री है बड़े पुत्र का नाम वीर प्रसाद तथा छोटे का नाम वैभव है और पुत्री का नाम रजनी देवी है रामलाल अपने तीनों बच्चों का नाम मांटेसरी में लिखवा देता है वीर प्रसाद ,वैभव एवं रजनी देवी प्रतिदिन स्कूल जाने लगते हैं।अब रामलाल की चौकीदारी के पैसे से घर एवं स्कूल की फीस भरना संभव न था क्योंकि उसे बहुत ही कम पैसे मिलते थे रामलाल और सुभागी आपस में सलाह करते हैं कि क्या किया जाए कि जिससे घर का और स्कूल की फीस का खर्चा पूरा किया जा सके।साथ-साथ यह भी बात सामने रखकर चर्चा करते हैं कि जब घर में फूटी कौड़ी नहीं है तो क्या किया भी क्या जा सकता है।लेकिन रामलाल और सुभागी ने बच्चों को मिल रहे पढ़ाई और ज्ञान से अपने आपको खुशी महसूस करते हैं रामलाल और सुभागी अपनी सफलता के रास्ते सोच ही रहे होते हैं कि एक जमींदार जिसका नाम था नरसिंह उसके द्वार पर आकर आवाज देता  है रामलाल ओ रामलाल तभी रामलाल द्वार पर आकर पूछते पूछते हैं जी महाराज क्या बात है जो तुम हमारे घर चले आए बुलावा भेजते मैं खुद ही चला आता ऐसी कौन सी गलती हो गई हमसे जो तुम तो हमारे घर चले आए।तब नरसिंह बताते हैं कि मैं जानता हूं कि आप के बच्चे पढ़ने में मेहनत करते हैं।और तुम्हारे पास पैसे की समस्या रहती है।तो मैं तुम्हें अपना चक पांच बीघा वाला खेत दे रहा हूं आप उसमें अनाज उपजाओ और लागत का आधा मै दूँगा आधा तुम लगाना।और जो भी पैसा पैदा होगा उसका आधा हमें दे देना आधा तुम ले लेना।यह सुनकर रामलाल सोचता है कि लागत का आधा कहां से लाऊंगा खर्च बहुत ज्यादा है तब उसकी पत्नी सुभागी बताती है कि तुम्हारी सारी जिंदगी मजदूरी करके बीती जा रही है तुम मेरी बात मान कर कुछ दिन और मजदूरी करके पैसा कमा कर लाओ।उस पैसे को हम खेत में और बच्चों की पढ़ाई में लगाएंगे और हम सब खेत में इतनी मेहनत करेंगे कि ईश्वर चाहेगा तो तुम्हें फिर मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी रामलाल नरसिंह से खेत बोने के लिए हां कर देता है।और मजदूरी के लिए चला जाता है वह मजदूरी करके करीब दो सप्ताह बाद लौटता है।और खेत की जुताई कराकर फसल को देता है तब सुभागी कहती है कि हम घर के कामकाज के बाद खेत की निराई गुड़ाई आज कार्य हम और बच्चों की मदद से कर लेंगे।तुम मजदूरी करने चले जाओ सुभागी नहीं चाहती थी कि वह यानी रामलाल मजदूरी करने जाएं परंतु उसे मजबूरी में कहना पड़ता था।क्योंकि उसे अपने सपनों को सच करने का जज्बा जो था।यह भी बताती है कि यदि मजदूरी करने नहीं जाओगे तो बच्चों की फीस कैसे भरी जाएगी।रामलाल शहर में मजदूरी करने चला जाता है।सुभागी भी खेतों में इतना मेहनत करती कि बहुत अच्छा उत्पादन मिलता है।कटाई के बाद कुल उत्पादन का आधा नरसिंह को दे दिया और शेष रामलाल ने ले लिया।रामलाल खेत में पैदा हुए अनाज में से खाने भर का स्टोर कर लिया और शेष अनाज व्यापारी से बेंच दिया अनाज को बेचकर मिले पैसे से किराना स्टोर की दुकान कर लेता है सुभागी के कहने पर।और उधर खेती भी करता है खेत और दुकान से उसे इतना पैसा मिल जाता था कि बच्चों की फीस और दो पहर की रोटी का इंतजाम हो जाता था इस संघर्ष के चलते अब रामलाल के तीनों बच्चों का स्नातक यानी ग्रेजुएशन पूर्ण हो जाता है।


बड़े पुत्र बीर प्रसाद ने निर्णय किया कि वह सिविल सर्विस यूपीएससी की तैयारी करके सीएसई को पास करेगा और उसने तैयारी शुरू कर कर दी यूपीएससी की प्री परीक्षा बीर प्रसाद ने पास कर ली।लेकिन मुख्य परीक्षा के समय वह बीमार पड़ गया जिससे वह परीक्षा नहीं दे सका परीक्षा न दे पाने के कारण उसे बहुत दुख हुआ और उसने निश्चय किया कि वह यू पी एस सी की परीक्षा जरूर पास करेगा।और उसने दूसरी बार  मे प्री व मुख्य परीक्षा के बाद साक्षात्कार के लिए बुलावा आया और  अंततः वह परीक्षा पास कर जिला अधिकारी बन जाता है।इस खुशी से से रामलाल व सुभागी  फूले नहीं समाए।


 उधर छोटे पुत्र वैभव ने निर्णय किया कि वह डॉक्टर बनेंगे तो उसमें बीएससी के बाद एमएससी और एमबीबीएस पास करके एक अनुभवी डॉक्टर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पुत्री रजनी देवी का पढ़ाने का बड़ा शौक था वह चाहती थी कि मैं अध्यापिका बनूँ तो उसने बीए के बाद m.a. किया और उसके बाद B.Ed करके एक कुशल अध्यापिका बन गई।  यू तो सफलता उन्हें रातों रात मिली पर यह रात कितनी लंबी थी  यह सिर्फ उन्हें ही पता थी।और उन्होंने कौन-कौन से पापड़ बेले थे यह सिर्फ उन्हें ही पता था। रामलाल और सुभागी अपने पुत्रों के कर्म कर्तव्य से मिली सफलता से बहुत गदगद हैं। और वह बहुत ही खुशी महसूस करते हैं।

अब रामलाल के घर के वह दिन भी आ गए जो वर्षों पहले सुभागी सपने में देखा करती थी। अब सुभागी नए नए कपड़े व जेवरात पहनती है और मनचाहा अच्छा भोजन मिलता है। परिवार के सभी लोग बड़े ही सोच मौज मस्ती से जीवन व्यतीत कर रहे हैं।


रामलाल वीर प्रसाद की शादी बड़ी धूमधाम से करते हैं।बीर प्रसाद की पत्नी शैलबाला है। शैलबाला बहुत ही दुष्ट स्वभाव की स्त्री है अब रामलाल एक भैंस के चारे पानी में अपना दिन व्यतीत करते हैं। और अब घर पर ही रहते हैं एक दिन रामलाल जी खाना खा रहे थे तभी उसने कहा बहू जरा दही देना तो अंदर से आवाज आई दही नहीं है। तभी वीर प्रसाद घर में प्रवेश करते हुए यह सुन लेते हैं। रामलाल खाना खाकर चुपचाप उठ जाते हैं।इसके बाद शैलबाला अपने पति बीर प्रसाद के लिए खाना लाती है और कटोरे में दही लाकर टेबल पर रखती है। तभी बीर प्रसाद को क्रोध आ गया और उसने शैलबाला को बुरा भला कहा और कहा जिन की वजह से हम आज इतने बड़े हैं उन्हें तुम भरपेट भोजन नहीं देती हो वीर प्रसाद ने कहा।


उसने निश्चय किया कि शैलबाला की आंखें जरूर खोलुंगा वह अपने पिता रामलाल के पास गया।और कहा पिता जी मैं किराए के मकान में रहने जा रहा हूं पिता रामलाल ने कहा क्यों तो बीर प्रसाद ने  दही वाली बात बताकर शैलबाला की को सही मार्ग पर लाने के लिए ऐसा करने जा रहा है बताया।अब वह किराए के मकान में रहता है जहां उसे बिजली का बिल,पानी का बिल, मकान किराया,दूधिया के द्वारा दूध खरीदना आदि-आदि खर्चे देने शुरू हो गए तब शे वाला की आंखें खुल गई और उसके विचार करती है जी उसे वहां रहकर यह सब कर्ज नहीं देना पड़ता है था।और अपने आप को कोसती हुई कहती है कि जिनकी वजह से हम सब कुछ हैं उनके खाने-पीने की चीजों मे लालच करती थी। शैलबाला एक महीने बाद घर वापस आ जाती है।और अपने ससुर रामलाल से क्षमा मांगती है।और वह परिवार में खुशी से रहने लगती है।रामलाल और सुभागी को खाना पीना मिलता है।और उनके बच्चे अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं।.



                                                        -  सुधीर भार्गव

Sudheer Bhargav

agaxndarejeetfix.blogspot.com

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